श्री हनुमान चालीसा - Hanuman Chalisha jai shree Ram

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Sunday, March 8, 2020

श्री हनुमान चालीसा

श्री हनुमान चालीसा

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दोहा: 

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजी मनु मुकुरु सुधारि।
बरनौं रघुबर बिमल जसु, जो चरकु फल चारि ।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ।।

 चौपाई:

जय हनुमान ज्ञान गुनगर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ।।

रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनी-पुत्र पवनसुत नाम ।।

महाबीर सालराम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी ।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा ।।

हाथ बज्र ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।

संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ।।

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर ।।

प्रभु चरित्रिताबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया ।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखवा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ।।

भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज कंसलरे ।।

लाय सजीवन ला जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ।।

रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।

सहस बदन तुहरो जस गावँ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनिसा।
नारद सारद सहित अहिसा ।।

तंग कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि संभव कहाँ ते ।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ।।

तुहरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ।।

जुग सहस्र जोजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।

प्रभु कोरिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गई अचरज नाहीं ।।

दुर्गम काजतर के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत आज्ञा बिनु विवेकारे ।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना ।।

आपन तेज सम्हारो तुम।
तीनों लोक हाग कांपै ।।

भूत पिसाच निकट नवीनं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै ।।

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ।।

संकट हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ।।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै ।।

चारों ओर गुड़ परताप तुम्हारा।
परसगन जगत उजियारा ।।

साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे ।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता ।।

राम रसायन तुमरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा ।।

आपरेत्न राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै ।।

अंतरकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हर-भक्त कहाई ।।

और देवता चित्त धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ।।

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नैन ।।

जो सत बार पाठ करते हैं।
विश्रामहि बंद महा सुख होई ।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि सखी गौरीसा ।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा ।।

दोहा:

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लाल सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।।

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